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'अमेरिका, यूरोप से मुक्त व्यापार समझौते की जरूरत'

नई दिल्ली, Thu, 05 Jan 2017 IANS

नई दिल्ली, 5 जनवरी (आईएएनएस)| देश का कपड़ा उद्योग प्रमुख रोजगार सृजन क्षेत्र होने के बावजूद वैश्विक पटल पर पिछड़ा हुआ है। चीन जैसे देशों से मुकाबला के लिए रफ्तार और माल की गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है। इस संदर्भ में कपड़ा उद्योग की वैश्विक बाजारों तक पहुंच बनाने के लिए सरकार को कड़े एवं त्वरित फैसले लेने की दरकार है, यानी विश्व के बड़े कपड़ा बाजारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) करना वक्त की जरूरत बन गया है।

आदित्य बिड़ला सेल्यूलोज के मुख्य विपणन अधिकारी राजीव गोपाल ने आईएएनएस के साथ बातचीत में नोटबंदी के कपड़ा उद्योग पर पड़े प्रभावों के बारे में बताया, "नोटबंदी की इस उद्योग पर सर्वाधिक मार पड़ी है, क्योंकि यहां अधिकतर कारोबार नकदी में ही होता है और यह आगे भी नकदी में ही होगा। छोटे शहरों और गांवों के उपभोक्ता भी नकदी में ही लेनदेन करते हैं। इससे उद्योग की मांग एवं आपूर्ति पर असर पड़ा है।"

देश में कपड़ा उद्योग क्षेत्र दूसरा सबसे बड़ा रोजगार सृजन क्षेत्र है। देश की अर्थव्यवस्था में इसकी चार से पांच फीसदी हिस्सेदारी है। इस क्षेत्र से निर्यात भी ज्यादा होता है। राजीव गोपाल कहते हैं, "इस क्षेत्र से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों का उपभोक्ताओं पर गहरा असर होता है। सरकार क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है, लेकिन सरकार को काफी कड़े फैसले लेने पड़ेंगे।"

कंपनी ने देश के कपड़ा निर्यातकों के लिए नोएडा में 'लिवा स्टूडियो' की शुरुआत की है, लेकिन यह पूछने पर कि इससे किस तरह से निर्यातकों एवं उपभोक्ताओं को लाभ होगा, राजीव गोपाल ने कहा, "'लिवा ब्रांड' और 'लिवा एलएपीएफ' शुरू करने के बाद एक ऐसे मार्केटिंग प्लेटफॉर्म की जरूरत थी, जहां हम कॉटन, विस्कॉस और एक्सेल जैसे तमाम तरह के फैब्रिक की प्रदर्शनी लगाई जा सके, निर्यातक यहां आकर इनका जायजा ले सकते हैं। अपने खरीदारों को वे सैंपल भेज सकते हैं।"

वह कहते हैं, "इस क्षेत्र में फाइबर न्यूट्रैलिटी की जरूरत है। दुनियाभर में मानव निर्मित फैब्रिक की खपत बढ़ रही है, लेकिन हम अभी भी कॉटन (कपास) पर ही अटके हुए हैं। मानव निर्मित फैब्रिक को तवज्जो देने की जरूरत है, क्योंकि दुनियाभर में इसी फैब्रिक की मांग है। हमें विश्वपटल पर मार्केटिंग करनी पड़ेगी। यूरोप के साथ जल्द से जल्द एफटीए करना होगा। दुनिया में कपड़ों के दो बड़े कारोबारी देश हैं- यूरोप और अमेरिका। इनके साथ जल्द से जल्द व्यापार समझौते करने होंगे।"

इस उद्योग के समक्ष तमाम तरह की चुनौतियां खड़ी हैं। राजीव कहते हैं, "यहां वर्किं ग कैपिटल लागत बहुत ज्यादा है। ब्याज दरें भी अधिक हैं जबकि दुनिया के बड़े देशों में ब्याज दरें कम होने से उन्हें फायदा पहुंचता है। शुक्र है कि ट्रांस पैसिफिक पैक्ट (टीपीपी) समझौता नहीं हुआ अगर वह हो जाता तो अमेरिका में कपड़ों की पूरी सप्लाई वियतनाम से हो जाती, जिसका भारत पर प्रतिकूल असर पड़ता। हालांकि, अब ट्रंप आ गए हैं तो इस समझौते के होने की गुंजाइश काफी कम है।"

वह कहते हैं कि भारत वैश्विक बाजार में बहुत पीछे है। चीन ने इस क्षेत्र पर दबदबा बनाया हुआ है। हमारे देश में कच्चे माल की उपलब्धता है, कौशल है, कामगारों की कमी नहीं है, फिर भी बहुत पीछे हैं, हम नवाचार में मार खा जाते हैं। काम करने में तेजी नहीं है, माल की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देते। ग्राहक सेवा की अनदेखी की जाती है। इन चीजों पर ध्यान देंगे, तभी तो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धियों को टक्कर दे पाएंगे।

--आईएएनएस


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