नॉम पेन्ह, 2 जनवरी (आईएएनएस)| विश्व के विशेषज्ञों द्वारा सबसे पुराने माने जाने वाले शून्य प्रतीक चिन्ह को कंबोडियाई राष्ट्रीय संग्रहालय जनवरी महीने में प्रदर्शित करेगा। खमेर सभ्यता के एक हस्तलेख संग्रह से लिया गया यह बिन्दु बलुआ पत्थर पर खुदा हुआ है। शिलालेख 19वीं सदी के अंत में उत्तर पूर्व कंबोडिया के क्रेटी प्रांत में त्रपांग प्रेई पुरातात्विक स्थल से बरामद हुआ था।
समाचार एजेंसी एफे न्यूज के मुताबिक पुरातत्वविद् मानते हैं कि शिलालेख पर लिखी 'वर्ष 605' की तिथि कंबोडिया में अंगकोट काल से पूर्व सन् 687 की है।फ्रांसीसी पुरातत्वविद् अधेमर्द लेक्लेरे (1853-1917) ने सन 1891 में इस खमेर शिलालेख की खोज की थी। उनके साथी और हमवतन जॉर्ज कोडेस (1853-1969) ने बाद में इसका नाम के-127 रखा।इतिहासकार कोडेस ने बाद में साल 1931 में 'अबाउट दी ओरिजिन ऑफ अरेबिक नम्बर्स' शीर्षक से प्रकाशित अपने लेख में इस खोज के महत्व का उल्लेख किया।कोडेस और अमेरिकी गणितज्ञ आमिर अकजेल (1950-2015) ने के-127 के महत्व पर जोर दिया, क्योंकि यह इस विचार को मजबूती प्रदान करता है कि शून्य प्रतीक चिन्ह की उत्पत्ति दशमलव संख्या प्रणाली में हुई और यह भारत से आया है या उनके शब्दों में कहें कि भारतीय रंग में रंगे अन्य पूर्वी एशियाई संस्कृतियों से आया है।सबसे पुराना ज्ञात शून्य, बिन्दु की जगह वृत्त के आकार में था। यह भारत से आया जो कंबोडिया के राष्ट्रीय संग्रालय में रखे गए शून्य प्रतीक चिन्ह से दो सौ साल पुराना है।भारतीय पांडुलिपि बख्शाली में भी शून्य है जो के-127 से पुराना हो सकता है। हालांकि वस्तु की कमजोरी के कारण विशेषज्ञ वर्तमान तकनीक के जरिए इसकी तिथि को निर्धारित करने में सक्षम नहीं हैं।कंबोडिया के राष्ट्रीय संग्रहालय के जीर्णोद्धार विभाग के उप निदेशक ची सोचीट ने समाचार एजेंसी एफे न्यूज से कहा कि कंबोडिया के पास कई शिलालेख हैं, लेकिन के-127 सबसे पुराना है।--आईएएनएस
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