कालेधन को रोकने के लिए लिया गया नोटबंदी के फैसले से जहां एक तरफ अवैध धन के बाहर आने की बातें की जा रही हैं वहीं दूसरी और बैंको की ईमानदारी पर भी लगातार सवाल खड़े हो रहें हैं। देश के अग्रणी औद्योगिक मंडल सीआईआई ने रविवार को कहा कि नोटबंदी के कारण बैंकों में भारी मात्रा में धनराशि जमा हुई है जिसका उत्पादक उपयोग हो रहा है और बैंकों को चाहिए कि वे सुदृढ़ हुए अपने कारोबार के वित्तीय आंकड़े और अन्य जानकारियां सार्वजनिक करें जिससे कि कर्जदारों की विश्वसनीयता का मूल्यांकन किया जा सके और गैर निष्पादित संपत्तियों से बचा जा सके।
सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने एक बयान जारी कर कहा, ‘डिजिटल प्लेटफॉर्म को देश के वित्तीय संसाधनों से जुड़े आंकड़े सार्वजनिक करने के लिए विकसित किया जा सकता है, जो ऋण लेने वालों को बैंक की साख का मूल्यांकन करने और बैंकों को कर्जदारों की विश्वसनीयता के मूल्यांकन में मददगार साबित होगा।’
चंद्रजीत ने कहा, ‘इसमें आपूर्ति की पहचान, वित्तीय सूचनाएं, साख से संबंधित सूचनाएं और किसी कंपनी की संचालन प्रणाली से संबंधित सूचनाएं हो सकती हैं। इसकी मदद से बैंकों को कर्जदारों की श्रेणियों के आधार पर अनुकूल ब्याज दर नीति अपनाने में भी मदद मिलेगी।’
उन्होंने कहा, ‘मौजूदा प्रणाली में भी ये आंकड़े हैं, लेकिन ये आंकड़े विभिन्न सरकारी विभागों के पास हैं। इन सभी विभागों के आंकड़ों को डिजिटल अवसंरचना के जरिए एकजगह एकत्रित किया जा सकता है, जिससे बैंकों को विश्वसनीय कर्जदारों की पहचान करने में मदद मिलेगी। स्वाभाविक तौर पर यह एक ऐसी प्रणाली होगी जिससे बैंकों को गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) से बचने में मदद मिलेगी।’
सीआईआई ने यह भी सुझाव दिया कि विभिन्न स्रोतों से लघु एवं मध्यम उद्यमों (एसएमई) और कॉर्पोरेट से जुड़े आंकड़े प्रचुर मात्रा में बैंकों और कर्ज देने वाली अन्य संस्थाओं को उपलब्ध करवाया जा सकता है।
स्रोतः आईएएनएस
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