कात्यायन मुनि ने एक बार मां दुर्गा का जप करते हुए ध्यान लगाया। मुनि के तप से मां दुर्गा प्रसन्न हुई और आशिर्वाद मांगने को कहा। मुनि ने कुछ भी लेने से इंकार कर दिया किन्तु देवी आग्रह को स्विकार करते हुए मुनि ने स्वयं दुर्गा को ही मांग लिया।
मुनि ने दुर्गा माता समान ओज और शक्ति वाली पुत्री की इच्छा प्रगट की। माता ने मुनि को तथास्तु कहा। और कात्यायन मुनि के घर मां दुर्गा ने स्वयं पुत्री का रूप लेकर जन्म लिया। इसलिये इन्हे कात्यायनी माता का कहा जाता है।
माता के इस रूप के अवतरण का उद्देश्य महिसा सुर का वध करना था। अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए माता को लाल चुनरी और घण्टियां चढ़ाकर इनकी आराधना की जाती है।
देवी पुराण में वर्णित पूजन विधि के अनुरूप माता का ध्यान लगाने से सिध्दि और सफलता दोनो प्राप्त होती है। साधक को दुर्गा पूजा के छठे दिन माँ कात्यायनी जी की वर्णित विधि के अनुसार पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए।
माता कात्यायनी की साधना करने से धर्म, अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें।
इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है।
देवी पुराण के अनुसार माता की साधना के लिए निम्नलिखित मंत्र का का वर्णन किया गया है।
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
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