नवरात्रि की तृतिया तिथि ओज और पराक्रम की देवी मां चन्द्रघटा के पूजन का दिन है ।
शेर पर सवार माता चन्द्रघटा के हाथ में भाला , बरछी और चक्र जैसे कई तरह के शस्त्र शुुसोभित होते है जो बुरी शक्तियों से लडने का प्रतीक माना जाता है।
बुरी शक्तियों का विनाश करने वाली मां चंद्रघंटा को मंगल और कल्याण दायिनी माना गया है। देवी पुराण के अनुसार इस दिन माता की आराधना करके महिलााओं को भोजन कराने और दान देने से समृध्दि की प्राप्ति होती हैै।
या देवी सर्वभूतेषु मा चन्द्रघटा रूपेणु संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमों नमः ।
यह चन्द्रघटा माता की आराधना करने का मंत्र है। इनके पूजन विधि में दूध का विशेष स्थान है। माता को दूध से बने पकवानो का भोग लगाकर इसे गरीबोें को खिलाने से मां प्रसन्न होती हैं और यश और कीर्ति प्रदान करती हैं।
मां दूर्गा का यह उग्र रूप है। इनके घण्टे की ध्वनि सुनकर विनाशकारी शक्तियां तत्काल पलायन कर जाती हैं। मां चन्द्रघटा पापीयों के विनाश और भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहती हैैं।
देवी पुराण में मां चन्द्रघंटा के बहुत ही विहंगम स्वरूप का वर्णन किया गया है।
माता के दस हाथ हैं। इन हाथों में शंख, कमल, धनुष - बांण , तलवार , कमंडल , त्रिशूल और गदा आदि अस्त्र सुशोभित बताये गये हैं।
इनके माथे पर स्वर्णिम घण्टे के आकार का अर्ध चन्द्र बना होता है इसीलिए इन्हे चन्द्रघंटा देवी कहा जाता है।
|
Comments: