श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही एक अक्टूबर से नवरत्रि का आगाज हो रहा है। नवरत्रि का आगाज होते ही गुजरात का लोकप्रिय नृत्य गरबा का रंग गुजरात सहित पूरा भारत भी गरबे के रंग में सराबोर हो जाएगा।
गरबा गुजरात का पारंपरिक नृत्य होने के नाते आज के लड़्के और लड़कियों को अपनी ओर खासा प्रभावित कर रहा है।
गुजरात के लोग गरबा को प्रवित्र परंपरा से जोडते है। लोगों की मान्यताएं है कि यह नृत्य माँ दुर्गा को काफी पसन्द है। इसीलिए नवरात्रि के दिनों में इस नृत्य के जरिये माँ दुर्गा को प्रसन्न किया जाता है।
आधुनिक नृत्यकला में स्थान प्राप्त गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और इसे नवरात्र के पहली रात शुरू कर के नृत्योत्सव के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन आम तौर पुरूष और महिलाऐं रंगीन वेश भूषा पहने हुए गरबा नृत्य करती है। गरबा नृत्य में ताली चुटकी और मंजीरा ताल देने के लिए प्रयोग होता है। स्त्रियां दो अथवा चार के समूह में मिलकर विभिन्न प्रकार से आर्वतन करती मां देवी की गीत गाती है। यह परम्परा पूरे नवरात्र भर चलता रहता है।
सेहत के लिए गरबा है फायदेमंद
गरबा महज धार्मिक ही नही स्वास्थ के लिए भी फायदेमंद है। गरबा के आगाज के पहले ही लोग नृत्य प्रशिक्षिण लेती है।
गरबा के समय देश के कोने कोने से परांगत लोग क्षेत्रीय लोगों को सिखाने के लिए अपनी टीम के साथ आते है। प्रशिक्षिण के दौरान उनके फिटनेस का खासा ध्यान रखा जाता है।
इसके साथ ही नौ दिन तक गरबा का नृत्य कर अपने स्वास्थ को तरोताजा रख सकते है। गरबा करने वाले ही नहीं बल्कि देखने वाले भी गरबा के उल्लास में डूब जाते हैं।
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