सामान्यतः हम ऐसे माहौल में होते हैं जो टीबी के बैक्टीरिया से संक्रमित होता है। ऐसे में संक्रमण का खतरा सामान्य होता है। लेकिन जब हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी होती है तो हम बैक्टीरिया से लड़ने में सक्षम होते हैं और इसे मल्टीप्लाई होने से रोक लेते हैं।
इसे टीबी संक्रमण कहा जाता है। यह जरूरी नहीं कि जो लोग टीबी संक्रमित होते हैं, उन्हें क्षयरोगी कहा जाए। दूसरी ओर, अगर व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता बैक्टीरिया को मल्टीप्लाई होने से रोक नहीं पाती है, तो उसे एक्टिव टीबी हो जाता है। इसे हम टीबी की बीमारी कहते हैं।
इंडियन मेडिकल एशोसिएशन के मनोनीत अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने बताया, ‘टीबी से संक्रमित सिर्फ 10 प्रतिशत लोगों को ही टीबी की बीमारी होती है। ऐसे लोग जिन्हें एचआईवी, डायबिटीज मेलिटस, पोषण की कमी होती है या वे जिनका एंटी-कैंसर या कॉर्टिकास्टेरॉइड जैसा इम्युनोसप्रेसेंट दवाओं से इलाज चल रहा होता है, उनके टीबी से संक्रमित होने पर यह बीमारी होने का खतरा कहीं अधिक होता है।’
टीबी के संक्रमण के खतरे को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा, ‘टीबी हवा के जरिए वह व्यक्ति फैला सकता है, जिसे टीबी की बीमारी हुई है। एक मरीज हर साल 10 या इससे अधिक लोगों को संक्रमित कर सकता है। आईएमए साल भर में एक लाख टीबी मरीजों को नोटिफाई करने में सफल रहा है। इसका मतलब है कि हम देश में 10 लाख नए मरीज होने से रोक पाने में सफल रहे।’
स्रोतः आईएएनएस
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