नोटबंदी पर केन्द्र सरकार का फैसला कालाधन और जाली नोटों की कालाबाजारी को बंद करने के लिए किया गया है। 500 रूपये और 1000 रूपये के नोटों को अवैध घोषित किए जाने से लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ है।
यह बात केन्द्र सरकार ने बीते दिन गुरूवार को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दाखिल एक जवाब का स्पष्टीकरण देते हुए कहीं। केन्द्र सरकार ने कहा कि सरकार की ओर से 500 रूपये और 1000 रूपये के नोटों की मौजूदगी खत्म करने के फैसले की प्रकृति केवल एक उचित प्रतिबंध तथा नियामक की है।
सरकार ने कहा कि लोगों द्वारा पुराने बड़े नोटों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने को अवैध या अनुचित पाबंदी करार नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं होता है।
सरकार अपने नोटबंदी फैसले का बचाव व रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया एक्ट, 1934 की धारा 26 (2) का संदर्भ देते हुए कहा कि इस धारा के मुताबिक सेंट्रल बोर्ड (केंद्र सरकार) की सिफारिश पर अधिसूचना, घोषणा कर तत्काल प्रभाव से किसी भी श्रेणी के बैंक नोट को लीगल टेंडर से बाहर कर सकती है।
सरकार नए नोट लाने के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि नए 2000 के नए नोटों को मुद्रास्फीति के मद्देनजर देखते हुए ऐसे फैसले लिए गए है। इसके साथ ही रुपये की क्रय शक्ति में कमी को ध्यान में रख लिया गया है।
सरकार ने विनिमय तथा अभाव के बीच फर्क बताते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को विभिन्न मूल्य वर्ग के नोटों, चेकों तथा ई-ट्रांसफर से वंचित नहीं किया जा सकता है।
गौरतलब है कि सरकार की यह प्रतिक्रिया वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के सवाल के जवाब में आई है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश सिब्बल ने अदालत से पूछा था कि किस कानून के तहत लोगों को अपने बैंक अकाउंट से पैसे निकालने से वंचित किया जा रहा है।
स्रोत- आईएएनएस
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